अरावली विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा कदम: 5 सवाल, एक्सपर्ट कमेटी, और अब रुका पुराना फैसला

अरावली पहाड़ियों की बहस फिर से चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 29 दिसंबर 2025 को इस मामले पर महत्वपूर्ण सुनवाई की। देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) जस्टिस सूर्यकांत ने इस सुनवाई की अध्यक्षता की। अदालत ने कहा कि 20 नवंबर 2025 का पुराना आदेश लागू नहीं होगा जब तक विशेषज्ञों की राय नहीं ली जाती। कोर्ट ने अरावली की परिभाषा पर कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए और एक नई सलाहकार समिति बनाने का सुझाव दिया।

अगली सुनवाई फिलहाल 21 जनवरी 2026 को होगी। इस दौरान देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अदालत की मदद करने का अनुरोध किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें (जैसे दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान) इस मामले पर प्रतिक्रिया देंगी।

क्या अरावली विवाद है?

माना जाता है कि अरावली पहाड़ियां भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला हैं। राजस्थान से शुरू होकर ये हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई हैं। यह क्षेत्र की हवा और पर्यावरण को संतुलित रखने में मदद करते हैं, इसलिए इन्हें “दिल्ली की सांसें” कहा जाता है।

अरावली क्षेत्र में कई सालों से अवैध खनन, पेड़ों की कटाई और पर्वतों का नुकसान की शिकायतें मिलती रही हैं। विभिन्न अदालतें और एनजीओ ने लगातार चेतावनी दी है कि अगर अरावली खत्म होती रही, तो इससे उत्तर भारत का पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित होगा, खासकर भूजल, प्रदूषण और गर्मी।

20 नवंबर की सुप्रीम कोर्ट की पूर्वनिर्धारित आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को अरावली क्षेत्र में कुछ दिशानिर्देशों को लागू करने का आदेश दिया था। लेकिन कुछ राज्य सरकारों और विशेषज्ञों ने कहा कि न्यायालय का आदेश ठीक से लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि पहले स्पष्ट होना चाहिए कि “अरावली रेंज” का असली अर्थ क्या है।

यही कारण है कि कोर्ट ने पहले से ही दिए गए आदेश को फिलहाल रोक दिया है, जब तक कि यह तय नहीं हो जाता कि अरावली की सीमाएं कहां तक हैं और किस क्षेत्र को वास्तव में “अरावली” कहा जा सकता है।

तुषार मेहता की दलील सुप्रीम कोर्ट में

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला कानूनी और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण है। उनका कहना था कि अरावली की सीमाओं को लेकर कई राज्यों में मतभेद हैं। असल में, अरावली नामक कुछ क्षेत्र उस रेंज का हिस्सा नहीं हैं।

कोर्ट को उनका सुझाव था कि कोई भी महत्वपूर्ण कार्रवाई करने से पहले विशेषज्ञों से स्पष्ट राय ली जाए। कोर्ट ने इस बात से सहमति जताई और कहा कि जब तक स्वतंत्र विशेषज्ञों की रिपोर्ट नहीं आती, कोई आदेश फिलहाल लागू नहीं होगा।

कोर्ट ने पांच महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए

इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने CJI सूर्यकांत की अध्यक्षता में पांच प्रमुख प्रश्न निर्धारित किए हैं।

  1. अरावली हिल्स और अरावली रेंज क्या हैं?
  2. क्या वर्तमान परिभाषा में कोई विरोधाभास है?
  3. क्या इस परिभाषा से गैर-अरावली क्षेत्रों को अरावली माना जा रहा है?
  4. क्या अवैध खनन बढ़ेगा या खनन प्रभावित होगा अगर ऐसा हो रहा है?
  5. क्या पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए कुछ नया कानून या दिशानिर्देश आवश्यक हैं?

अब एक्सपर्ट कमेटी इन सवालों पर विचार करेगी, जिसके बाद कोर्ट अंतिम निर्णय लेगा।

एक्सपर्ट कमेटी की स्थापना

सुप्रीम कोर्ट ने एक “हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी” का गठन करने का आदेश दिया है। इस कमेटी में नीति सलाहकार, न्यायाधीश, भूगर्भशास्त्री और पर्यावरण विशेषज्ञ शामिल होंगे।

यह कमेटी तीन महत्वपूर्ण कार्य करेगी—

  • अरावली रेंज की सटीक और नई परिभाषा बनाना
  • खनन और निर्माण कार्यों के पर्यावरण पर प्रभाव की समीक्षा
  • भविष्य के लिए स्थिर और स्थायी दिशा-निर्देश प्रस्तुत करें।

कोर्ट ने कहा कि इस कमेटी की रिपोर्ट आने तक कोई नया कानून या आदेश नहीं लागू होगा।

पर्यावरणीय चिंता और अरावली

अरावली पर्वत श्रृंखला केवल पत्थरों और जंगलों से नहीं बना है।यह उत्तर भारत का वातावरण है। दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा में ठंडी हवा और बारिश का बड़ा हाथ है।

हवा और भी खराब हो सकती है अगर अरावली के जंगल खत्म हो गए या पहाड़ टूट गए। खनन और निर्माण के कारण अरावली क्षेत्र में भूजल सूख रहा है, धूल बढ़ रही है और गर्मी के स्तर में तेजी आ रही है, जैसा कि कई वैज्ञानिक रिपोर्टों ने बताया है।

कोर्ट ने इसलिए कहा कि इस विषय पर जल्दबाजी नहीं की जा सकती है। विकास के लिए पहले प्रकृति की रक्षा करनी होगी।

राज्यों को न्यायालय से नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर उत्तर देने को कहा है। अदालत ने कहा कि सभी राज्यों को नियमों का पालन करना चाहिए ताकि अरावली को कोई गलतफहमी या नियमों का उल्लंघन नहीं होगा।

राज्य सरकारों से पूछा गया है कि अरावली की सुरक्षा के लिए अब तक उन्होंने क्या किया है और अगले कदम क्या हैं। इन्हीं जवाबों पर अगली सुनवाई में चर्चा होगी।

CJI Sunil Kumar की महत्वपूर्ण टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, “अरावली की परिभाषा में अगर भ्रम रहेगा, तो मामला और उलझ जाएगा।”उन्होंने चिंता व्यक्त की कि अगर परिभाषा गलत होती, तो अरावली से बाहर के क्षेत्रों को भी रेंज का हिस्सा बताया जाएगा, जो खनन या निर्माण पर असर डालेगा।

“अगर हम गलत सीमाएँ तय कर देंगे, तो गैर-अरावली इलाके में बिना रोक-टोक खनन बढ़ जाएगा,” उन्होंने कहा। इसका असर न सिर्फ पर्यावरण पर होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी होगा।”

कोर्ट को संतुलित करने की कोशिश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसका उद्देश्य किसी उद्योग या राज्य सरकार को नुकसान नहीं पहुंचाना है, बल्कि एक समान मार्ग खोजना है। “विकास जरूरी है, लेकिन बिना पर्यावरण सुरक्षा के विकास टिकाऊ नहीं हो सकता,” न्यायालय ने कहा।”

अदालत चाहती है कि अंतिम निर्णय ठोस आधार पर किया जाए ताकि खनन उद्योगों को अनुचित नुकसान नहीं होगा और पर्यावरण को स्थायी क्षति नहीं होगी।

विशेषज्ञों की राय की आवश्यकता क्यों है?

CJI ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में सैटेलाइट डेटा, तकनीक और भूगोलिक डेटा से कई नए तरीके आए हैं। कोर्ट चाहती है कि वे भी कमेटी के अध्ययन में शामिल हों ताकि वैज्ञानिक रूप से नक्शे और सीमाएं तय की जा सकें।

इससे यह भी पता चलेगा कि कहां पर्यावरण संतुलन बिगड़ने का खतरा है और कौन से क्षेत्रों को “सुरक्षित क्षेत्र” कहा जाता है।

Expert Committee से क्या उम्मीदें हैं?

यह कमेटी न सिर्फ एक परिभाषा बनाएगी, बल्कि एक सरल दिशानिर्देश भी बनाएगी जो उद्योग, स्थानीय प्रशासन और आम लोगों को समझने में मदद करेगा।

कोर्ट ने कहा कि “जो नीति बनी, वह सिर्फ कागज़ पर नहीं, जमीन पर अमल में आए।””

इसके अधीन:

  • पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्रों को सुरक्षित घोषित किया जाएगा।
  • नियमों का पुनर्मूल्यांकन होगा जहां खनन अभी भी चल रहा है।
  • अवैध खनन को रोकने के लिए कड़ाई से निगरानी की जाएगी।

अवैध खनन और इसके परिणाम

लंबे समय से अरावली क्षेत्र में अवैध खनन होता आ रहा है। पुलिस और प्रशासन की कई बार की गई कार्रवाई के बावजूद यह रुक नहीं पाया। पत्थर, बजरी और रेत के कारोबार में बड़े पैमाने पर धन लगाया गया है, इससे व्यापार और बढ़ गया है।

इससे जंगलों की जड़ें खत्म हो रही हैं और पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। गाँवों में पानी की कमी बढ़ती जा रही है और भूजल कम हो रहा है।

कोर्ट ने कहा कि अगर इस स्थिति को जल्दी नहीं सुधारा गया, तो पर्यावरण का संतुलन बिगड़ सकता है।

समाज और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया

इस निर्णय को सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा हुई है। #AravalliCase और #SupremeCourtDecision हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर।

लोगों का मत दो प्रकार का है—

  • कुछ लोगों ने अदालत की निर्णय की प्रशंसा करते हुए कहा कि “आख़िरकार पर्यावरण को लेकर अदालत ने सख्त रुख अपनाया।”
  • ”कुछ लोगों का कहना है कि “यह निर्माण और खनन उद्योगों पर असर पड़ेगा।”

ज्यादातर लोगों का मानना है कि अगर अरावली को बचाना है, तो सरकार और अदालत दोनों को इस बार ईमानदारी से काम करना होगा।

क्या होगा?

21 जनवरी 2026 को फिर से सुनवाई होगी। तब तक एक्सपर्ट कमेटी की स्थापना पर निर्णय लिया जा सकता है।

कोर्ट फिलहाल 20 नवंबर के पूर्ववर्ती आदेश को लागू नहीं करेगा। उसके बाद, रिपोर्ट आने पर ही अगला कदम तय किया जाएगा।

इस मामले में दो बातें स्पष्ट हैं:

  • पर्यावरण मामलों में सुप्रीम कोर्ट गंभीर है।
  • आने वाली सुनवाई अरावली का भविष्य निर्धारित करेगी।

उत्कर्ष

अरावली विवाद करोड़ों लोगों की भावनाओं का मुद्दा है और यह सिर्फ कानूनी मुद्दा नहीं है। यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आशा जगाता है कि विकास और प्रकृति को संतुलित किया जा सकता है।

अब सभी को जनवरी की सुनवाई और एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए। यदि यह रिपोर्ट स्पष्ट और सटीक है, तो अरावली का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा, जिससे देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला फिर से हरी-भरी होगी।

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